Jai Shiree Pabuji maharaj

 गो रक्षा की जब पुकार हुई तो पाबूजी राठौड़ ने विवाह वेदि से बीच में ही उठते हुए अपनी नव ब्याहता पत्नि से कहा था, कि चार फेरे इस धरती पर, और शेष फेरे स्वर्ग लोक में लूंगा ..... 


सम्पूर्ण राजस्थान में विवाह के वक़्त दूल्हे दुल्हन के मात्र 4 ही फेरे लेने की यह प्रथा जबसे यानी सदियों से प्रचलित है .... 

जबकि शेष स्थानों पर ये रस्म 7 फेरों की होती है ....


यह प्रथा #लोकदेवता #पाबूजीराठौड़__ और उनके गायों के खातिर, एक #धर्मयोद्धा के रूप में देवलोक हो जाने की कथा से जुड़ी प्रथा है। 


#अमरकोट ( सिन्ध प्रांत, वर्तमान #पाकिस्तान ) #रियासत के सोढा राजपूतों से एक दिन पाबूजी राठौड़ के सगाई सरपण का नारियल आता है .... (विवाह का रिश्ता) ....


फिर तय निश्चित तिथि को पाबूजी राठौड़ अपने सगे सम्बन्धियों बाल सखा मित्रों एवं कुटुंबजनों के साथ अपनी बारात धूमधाम से अमरकोट ले के जाते हैं .... किन्तु उनका नाराज़ बहनोई जिन्दराव खींची जो कुटिल स्वभाव का भी होता है, वह विवाह में शामिल नहीं होता है  ....


जिन्दराव एक योजना बनाता है .... अपने भाइयों के कुटुंब कबिले के साथ मिल के अपने बड़े साले बुढोजी पे आक्रमण की .... बुढोजी छोटे भाई पाबूजी की बारात में ना जाकर अपने रावळे मे ही रुकते हैं, पहले महिनों बाद बारत लौटती थी तो कई पुरूष अपने परिवार की रक्षार्थ घर पर ही रूकते थे ....


जिन्दराव अपने भाइयों और सेना के साथ पाबूजी के गांव की और प्रस्थान करता है एवं वहां पहुंचकर सीमा पे अपनी सेना का पड़ाव डालता है .... योजना बनती है कि जिंदराव पहले अकेला जा के अपने बड़े साले बुढोजी को युद्ध के लिए ललकरेगा और घोड़ी (जिसका नाम केशर कालमी होता है वो) देने की मांग करेगा ....


जिन्दराव अपने ससुराल पहुंचकर अपने बड़े साले बुढोजी से झगड़ा करता है और उनको युद्ध के लिए ललकारता है .... 


बुढोजी की पत्नी डोड गैहली जो डीडवाना की *डोड कुल की बेटी थी अपने घर की छत के मालिये (कमरे) से घर के आंगन में ये नज़ारा देख रही होती है .... क्षत्राणी छत से नीचे आती है और कटार निकाल के अपने ननदोई जिन्दराव को युद्ध के लिए ललकारती है .... बोलती है मेरे पति को एक शब्द कहा तो कटार सीने में उतार दूंगी ....


अपने पति की रक्षार्थ अपने सगे ननदोई को ललकारने वाली उस वीर क्षत्राणी का रौद्र रूप देख के जिन्दराव वहां से उल्टे पांव भाग खड़ा होता है ....

(उपरोक्त वर्णित #डोड #क्षत्रियवंश अब विलिन हो गया या अन्य उप शाखाओं के नाम से विभाजित हो गया, यह शोध का विषय है ....)


जिन्दराव अपने डेरे में आकर अपने भाइयों को पूरी बात बताता है .... जिन्दराव के भाई कहते हैं अब हम खाली हाथ जायल (नागौर) वापसे लौटे तो हमारी बेइज्जती होगी ...

तो क्यों न हम कुछ ऐसा जतन कर के जायें की पाबूजी खुद अपनी घोड़ी (केशर काळमी) को हमारे पास छोड़ के जाये ....


योजना बनती है .... रात को जिन्दराव अपनी सेना और भाइयों के साथ देवल चारणी की गौशाला पे हमला करता है .... गौशाला में देवल बाईसा का पति और उनके 24 भाई वीरतापूर्वक मुकाबला करते हुए रणखेत हो जाते हैं .... 


भीष्ण रण में जिन्दराव देवल चारणी के पति और उनके 24 चारण भाइयों को मार के सारी की सारी गायें हांककर ले जाता है, लूट के अपने साथ ले जाता है ....


तड़के (जल्द सवेरे) देवल बाई दुहारी करने (दूध दूहने) अपनी गौशाला बाड़े में आती है तो वहां का नज़ारा देख के विस्मित हो जाती है .... अपने पति की और कुटुंब की लाशें देख के देवल बाईसा रोते रोते बेसुध हो जाती है ....


देवल बाई पाबूजी के रावळे जा के रोते हुए मदद की गुहार लगाती है .... अंदर से पाबूजी के बड़े भाई राव बुढोजी आते हैं और देवल बाई को रोते-बिलखते देख के कहते हैं .... हे बाई क्या हुआ ?? .... इतनी भोर में आप इस हालत में मेरे द्वारे क्यों ?? ....


देवल बाई बुढोजी को पूरी बात बताते हुए कहती है .... भाईसा मेरा भाई पाबू जी कठै है ?? .... उसने मुझे मेरी रक्षा का वचन दिया था, वो वचन कहाँ है  .... ?? 


बुढोजी कहते हैं .... बाईसा पाबू तो अपनी जान (बारात) ले कर अमरकोट परणीजने (ब्याहने) गया है अब बारात तो वापस एक दो महीने बाद आयेगी ....


अमरकोट के गढ़ में उस वक़्त पाबूजी चँवरी (लग्न मंडप) में फेरे ले रहे होते हैं .... 


देवल चारणी की घोड़ी काळमी को अनहोनी और अपनी पूर्व मालकिन की पुकार का आभास होता है तो वो ज़ोर ज़ोर से चिंघाड़ते हुए अपने पैर पछाड़ने लगती है ....

(विदित रहे अश्व कुत्ते बिल्ली इत्यादी जानवरों को अनहोनी का आभास दूर से ही हो जाता है, यह उन्हें ईश्वर प्रदत्त गोड गिफ्ट होती है, जबकि अश्व को तो देवगण का माना जाता ही है) 


पाबूजी के 2 अभिन्न मित्र चांदोजी राठौड़ और डेमोजी राठौड़ भी उस वक़्त मंडप में मौजूद रहते हैं .... पाबूजी का साला चांदोजी से जा के कहता है आपकी प्रिय घोड़ी केशर काळमी को क्या हुआ ? ज़ोर ज़ोर से पछाड़ें क्यों लगा रही है ?? ....


चांदोजी और अपने साले का संवाद फेरे लेते पाबूजी के कानों में पड़ता है और देवल चारणी को दिये वचन भी दष्टांत होता है .... पाबूजी उस वक़्त 3 फेरे ले चुके होते हैं और चौथे फेरे के लिए पांव आगे बढ़ाते हैं ....


लेकिन अपनी बहन देवल बाई  पर संकट देख के पाबूजी चौथा फेरा पूरा नहीं लेते .... अपनी तलवार से वो गठजोड़ा (दुल्हन की चुनड़ी और दूल्हे के साफे का बंधन) तोड़ के अपनी घोड़ी कालवी की पीठ पे सवार हो जाते हैं .... (सम्पूर्ण राजस्थान में तब से ही विवाह के वक़्त सिर्फ 4 फेरे लेने की प्रथा है) ....


पाबूजी के साले साली ससुराल पक्ष के लोग उनके पांव पकड़ लेते हैं और कहते हैं .... पावणा (दामाद/जंवाई) आप शादी बीच मे छोड़ के कहाँ और क्यों जा रहे हो ?? .... क्या हमारी मनुहार खातिरदारी दान दहेज में कोई कमी रह गयी ?? .... या हमारी बाई (कन्या) में कोई कमी है ?? .... हम तो आपको बिना फेरे पूरे किए जाने नहीं देंगे ....


पाबूजी कहते हैं मेरी धर्म की बहन देवल बाई संकट में है मुझे जाना ही होगा मैंने देवी पुत्री उस चारणी माता को विपत्ति में  रक्षा का वचन दे रखा है, और उसी शर्त पर उसने मुझे यह घोड़ी सौंपी थी  .... 

मैं जीवता (जिंदा) रहा तो शादी फिर हो जाएगी वापस आ के शेष फेरे ले लूंगा आपकी बाई से ....


पाबूजी जी फेरे शादी बीच मे छोड़ के घर लौटते हैं और अपने बहनोई जिन्दराव को सबक सिखाने की ठानते हैं .... तभी उनकी मां कमला दे उनसे कहती है देख पाबू वो तेरी बहन का सुहाग है तू कुछ ऐसा काम मत करना जिससे तेरी बहन के सुहाग पे आंच आये ....


पाबूजी मां को कहते हैं ठीक है लेकिन मैं उसे सबक जरूर सिखाऊंगा .... मां को वचन दे कर पाबूजी रणभूमि में निकलते हैं ....


एक तरफ जायल (नागौर) के जिन्दराव की सेना और कुटुंब दूजी तरफ पाबूजी और साथ मे उनके दो अभिन्न मित्र चांदोजी और डेमोजी .... युद्ध शुरू होता है और देखते देखते पाबूजी रणभूमि में त्राहिमाम मचा देते हैं .... चारों तरफ खून की नदी बहने लगती है लाशों के अंबार लगता है .... अंत मे नंबर आता है जिनराव का ....


जिन्दराव सामने मृत्यु देख के अपने साले पाबूजी जी जान की भीख मांगता है ....


पाबूजी बहनोई जिन्दराव को माफ कर के जैसे ही पीछे मुड़ते हैं घायल जिनराव एक तलवार लपक के तलवार का भरपूर वार पाबूजी की गर्दन पर करता है .... पाबूजी वहीं रणखेत हो जाते हैं धड़ और गर्दन अलग अलग हो जाती है ....


पाबूजी के रावळे में जब खबर पहुंचती है कि अपनी बहन देवल को दिए वचन की खातिर गौ रक्षा करते हुए पाबूजी शहीद हो गए तो उनके बड़े भाई राव बुढोजी रणभूमि की और बढ़ते हैं .... राव बुढोजी भी युद्ध में बहनोई जिन्दराव के हाथों शहीद हो जाते हैं ....


बुढोजी की पत्नी उस वक़्त 9 माह की गर्भवती थी .... अपने पति की मौत की खबर सुनकर क्षत्राणी अपनी कटार निकाल के अपना पेट चिर के अपने गर्भस्थ शिशु को गर्भ से बाहर निकाल के अपनी सास कमला दे को सौंपती है .... इसके बाद क्षत्राणी अपने पति के साथ अग्नि में चूड़े चुनड़े सहित अमर (सती) हो जाती है .... (क्योंकि नियम था, गर्भवती स्त्री सती नहीं हो सकती थी ...)


अमरकोट रियासत में जब खबर पहुंचती है कि उनके कुंवर साब (दामाद) पाबूजी गौ रक्षा और अपने वचन की खातिर युद्ध में शहीद हो गए हैं तो पाबूजी की 4 फेरों की ब्याहता पत्नी सुप्रिया कुंवर मारवाड़ आती है और अपने सुहाग पाबूजी जी के साथ चीता में अमर हो जाती है ....


पाबूजी जी के भाभीसा यानी बड़े भाई बुढोजी की पत्नी (डोड गैहली) ने सती होने से पूर्व अपना पेट चिर के जिस बेटे को जन्म दिया था उस बेटे का नाम रखा गया .... झरड़ो जी ....


झरड़ो जी ने बड़े हो कर जिन्दराव से अपने पिता राव बुढोजी और अपने काकोसा पाबूजी जी की मौत का बदला लिया ....


उसके बाद कालांतर में आगे चलकर झरड़ो जी #नाथसम्प्रदाय  में दीक्षित हो गये और उनका नाम बदलकर #रुपनाथ जी हो गया .... रुपनाथ जी के रूप में वो आज भी राजस्थान के ख्याति प्राप्त सिद्ध पुरुष और लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं .... रुपनाथ जी के राजस्थान में अनेक मंदिर देवरे बने हुए हैं ....


पाबूजी राठौड़ 800 वर्षों से राठौड़ कुल के कुल देवता हैं .... और राजस्थान के प्रमुख लोक देवता है .... पाबूजी के मंदिर देवरे राजस्थान के प्रत्येक शहर कस्बे गांव ढाणी ढाणी में है .... पाबूजी राजस्थान के घर घर में पूजे जाते हैं ....


ऊंटों के बीमार होने पर या ऊंट कल्याण के लिए पाबूजी राठौड़ की मन्नत मांगी जाती है .... प्लेग चेचक इत्यादी महामारीयों के समय रोगों के लिए भी पाबूजी की मन्नत मांगी जाती है अथवा उनके मन्दिर में धोक दी जाती है .... बताते हैं, ऐसे आस्थावान को फायदा पहुंचता है ....


पाबूजी ने गौ रक्षा और अपने वचन की खातिर चौथे फेरे के बीच मे ही चँवरी (लग्न मंडप) छोड़ी थी .... तब से 800 वर्षों से सम्पूर्ण राजस्थान में शादी में दूल्हे दुल्हन के 4 फेरों की ही प्रथा है .... 3 फेरों में दुल्हन आगे 1 फेरे में दूल्हा आगे ....


#केसरघोडी़काळवी मोत्यां जडी़ लगाम |

चढ #भाल्यांळा आवज्यो थ्हानै दुनिया करे प्रणाम ||

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